'म्यौर कुमाऊं, म्यौर पहाड़, डान-कान सबै भौतै भल लागूं..', वाकई भारतीय
नौसेना प्रमुख एडमिरल देवेंद्र कुमार जोशी पर्वतीय वादियों के बीच पहुंच
भावविह्वल हो उठे। एकबारगी लगा मानो गुनगुनी धूप में सिहरन देती हवा के
झोंकों ने उन्हें पहाड़ में बिताए बचपन के दिनों की याद ताजा करा दी। तभी तो
अपने मुलुक (अंचल) के लोगों से रूबरू हुए तो ठस पहाड़ी बोली से जैसे
लाड़-दुलार उड़ेल दिया।
पर्यटन नगरी रानीखेत में मिश्रित वन क्षेत्र से घिरे गोविंद सिंह मेहरा
राजकीय चिकित्सालय भवन की छत पर पहुंचते ही एडमिरल के हाव-भाव सबकुछ बदल
गए। आंखों की चमक पहाड़ी वादियों को निहार रही थी। लगा जैसे इंडियन नेवी के
सर्वोच्च पद पर बैठा पहाड़ का यह गौरव बचपन की यादों में खो सा गया। भावुक
मुद्रा में कदम आगे बढ़े, फिर मुस्करा कर बोले-'म्यौर कुमाऊं, म्यौर पहाड़,
डान-कान सबै भौतै भल लागूं..।'
रौबीले अंदाज व नौसेना प्रमुख जैसी शख्सियत से इतर एडमिरल का यह
बदला-बदला सा रूप पहाड़ प्रेम का संकेत भी दे रहा था। प्रेसवार्ता के बहाने
एडमिरल ने इसे बयां भी कर दिया। बोले-'अपने लक्ष्मीपुर गांव दौलाघाट
(अल्मोड़ा) में खूब क्रिकेट खेला करते थे..एक बार दांत भी तुड़वा बैठे'।
यही कोई 40 दशक पहले की यातायात सुविधा का जिक्र करते हुए एडमिरल ने
कहा-'तब रानीखेत से खैरना रूट पर इक्का-दुक्का हरे रंग की केमू बसें चलती
थीं.., लंबे इंतजार के बाद उनमें सफर करते थे। अब तो सब कुछ बदल गया है..।
इंटरनेट, दूरसंचार आदि काफी तरक्की हो गई है।'
danik jagaran